एक रात मेरे घर,
एक चोर आया,
मुझको हड़काते हुए जगाया,
बोला...
जो कुछ भी है सब निकाल दीजिये,
अन्यथा,
अपनी जान की खैर मत समझिये,
मैंने कहा भाई साहब,
आप कुछ दिन पहले भी तो आये थे,
दिन में तलाशी का वारंट लाये थे,
पहन रखी थी वर्दी,
बिल्ला यू. पी. पी. का लगाये थे,
मेरा सब कुछ लूटकर,
इच्छाओं को सूट कर,
गाँधी जी के तीन बंदरों का सिद्धांत,
हड़का कर समझाए थे,
आज आप रात में,
वर्दी नहीं साथ में,
लगता नहीं कि आप चोर हैं,
संभवतः मेरी कविताओं से भाव विभोर हैं,
उसने कहा जी नहीं,
मै आज भी थाने पर गया था,
पच्चीस प्रतिशत पर वर्दी मांग रहा था,
इतने में मेरा 'मौसेरा भाई' आया,
पचास प्रतिशत का लालच दिखाया,
वर्दी हथियाया,
मेरा मामला इस शर्त पर तय कराया,
कि...
यदि हम सफल होकर आयेंगे,
निर्धारित परसेंटेज पहुंचाएंगे,
तो वे अगली बार साथ चलेंगे,
थोडी दूरी पर रहेंगे,
मौके पर वारदात के बाद ही जायेंगे...!
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