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Thursday, February 17, 2011

कांटे कहाँ-कहाँ हैं ?


यूँ ही नहीं चला हूँ नंगे पाँव सफ़र पर |

मेरे पाँव जानते हैं कि कांटे कहाँ-कहाँ हैं ?


जयकरन सिंह भदौरिया

Thursday, February 10, 2011

तेरे जाने के बाद ...


तेरी अहमियत, ज़रुरत,मोहब्बत और जज्बात

सबका एहसास हुआ आज तेरे जाने के बाद
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जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'

Monday, November 08, 2010

किधर जाऊं मैं...?


इधर जुल्फ आशिक की, उधर माँ का आँचल

कहाँ सर छुपाऊं ? किधर जाऊं मैं ?


जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'

Friday, April 02, 2010

आज के बच्चे...


आज के बच्चे ,

होते नहीं अच्छे ...!

क्यूँ ?

पारिवारिक परिवेश ...?

समाज या देश ...?

पहनावा या वेश ...?

घर या परदेश ...?

हर जगह ,

हर क्षण ,

क्या इन सब का असर ,

बच्चों पर पड़ने से,

रह चुका है शेष ...?

बदले हुए वेशों को देखकर ,

क्या वे बदले नहीं वेश ...?

इन सब तमाम ,
अस्तित्वों के ,

परिणाम ,

प्रत्यक्ष हैं ...

आज के बच्चे ...!

जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'

Sunday, March 28, 2010

सवाल...

उन्हें 'सच्चा' या 'झूठा', क्या कहोगे ऐ मेरे खुदा ?

जो खुद से झूठ लेकिन, दूसरों से सच बोलते हैं...!

जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'

दुश्वारियां ...

राह- ऐ -मंजिल की दुश्वारियां, अब ख़त्म हो चली हैं

अपनी परछाई पीछे छोड़ आया हूँ, लड़ने के लिए...!

जयकरन सिंह भदौरिया 'जय'

चोर...

एक रात मेरे घर,

एक चोर आया,

मुझको हड़काते हुए जगाया,

बोला...

जो कुछ भी है सब निकाल दीजिये,

अन्यथा,

अपनी जान की खैर मत समझिये,

मैंने कहा भाई साहब,

आप कुछ दिन पहले भी तो आये थे,

दिन में तलाशी का वारंट लाये थे,

पहन रखी थी वर्दी,

बिल्ला यू. पी. पी. का लगाये थे,

मेरा सब कुछ लूटकर,

इच्छाओं को सूट कर,

गाँधी जी के तीन बंदरों का सिद्धांत,

हड़का कर समझाए थे,

आज आप रात में,

वर्दी नहीं साथ में,

लगता नहीं कि आप चोर हैं,

संभवतः मेरी कविताओं से भाव विभोर हैं,

उसने कहा जी नहीं,

मै आज भी थाने पर गया था,

पच्चीस प्रतिशत पर वर्दी मांग रहा था,

इतने में मेरा 'मौसेरा भाई' आया,

पचास प्रतिशत का लालच दिखाया,


वर्दी हथियाया,

मेरा मामला इस शर्त पर तय कराया,

कि...

यदि हम सफल होकर आयेंगे,

निर्धारित परसेंटेज पहुंचाएंगे,

तो वे अगली बार साथ चलेंगे,

थोडी दूरी पर रहेंगे,

मौके पर वारदात के बाद ही जायेंगे...!